इंटरव्यू : ज्यादा तीखा लिखने के लिए ब्लॉग बेहतर मंच
Friday, 8 February 2008
ज्यादा तीखा लिखने के लिए ब्लॉग बेहतर मंच
प्रसिद्ध ब्लॉगर और पत्रकार दिलीप मंडल से वेबदुनिया की बातचीत
आप कब से ब्लॉगिंग की दुनिया में सक्रिय हैं। हिंदी में ब्लॉग शुरू करने का ख्याल कैसे आया।
ब्लॉग की दुनिया से परिचय तो पुराना था, लेकिन इंग्लिश ब्लॉग के जरिए। हिंदी में ब्लॉगिंग हो रही है, ये तो पिछले दो साल से मालूम था, लेकिन दूर से ही उन्हें देख रहा था। दिलचस्पी 2007 के बीच वाले महीनों में बढ़ी। जुलाई, 2007 में मोहल्ला पर "कामयाब लोगों का अलगाववाद" मेरी पहली पोस्ट थी। मेल के जरिए मोहल्ला के मॉडरेटर अविनाश को भेजी और उन्होंने धूमधाम से छाप दी। अगली पोस्ट थी, "कब था पत्रकारिता का स्वर्णकाल"। उस पर प्रतिक्रियाओं का लंबा सिलसिला चला (कई-कई हजार शब्द लिख डाले गए होंगे)। कुछ दिन तक तो मोहल्ला के लिए लिखता रहा, फिर ख्याल आया कि अपना भी एक मंच बना ही लिया जाए।
इस विधा के बारे में आपकी शुरुआती प्रतिक्रिया क्या थी।
ब्लॉग को लेकर ये तो मालूम था कि अभी इससे पैसे नहीं आने वाले हैं। चूँकि मेरा लगभग सारा लेखन प्रिंट और रेडियो के लिए रहा है तो बिना पैसे का लेखन कुछ जमा नहीं। लेकिन ये एहसास हमेशा था कि शुरुआती दौर होने के बावजूद ब्लॉग एक ताकतवर माध्यम है। इसकी दूसरी बड़ी ताकत है कि ये पाठक को सक्रिय होने की आजादी देता है। कहने को तो ये आजादी अखबारों और पत्रिकाओं में भी है। लेकिन पाठकों की सक्रियता ज्यादा मूर्त रूप में ब्लॉग में ही दिखती है। साथ ही प्रिंट काफी हद तक एकालाप है, जबकि ब्लॉग संवाद है।
आपके कौन-कौन से ब्लॉग हैं।
प्रणव प्रियदर्शी, अनुराधा और मैं, हम तीनों मिलकर रिजेक्ट माल नाम का ब्लॉग चलाते हैं। इसे अगस्त 2007 में बनाया गया है और नियमित न होने पर भी इसे हजारों पाठक मिले हैं। इसके अलावा मैं मोहल्ला, इयत्ता और कबाड़खाना - इन तीन ब्लॉग से जुड़ा हूँ, लेखक की हैसियत से।
ब्लॉग पर लिखते हुए आप किन्हीं खास विषयों पर ही लिखते हैं। आप अपने विषय का चुनाव किस आधार पर करते हैं।
ब्लॉग पर लिखते समय कई बार मैं वो विषय चुनता हूँ, जिनके लिए प्रिंट में जगह निकालना मुश्किल होता है। जाति-व्यवस्था और पत्रकारिता पर मेरे लेख उसी श्रेणी में हैं। जाति पर मैं प्रिंट में लिखता रहा हूँ, लेकिन ज्यादा तीखा लिखने के लिए ब्लॉग बेहतर मंच लगा। वैसे उनमें से कुछ लेख बाद में प्रिंट में भी छपे। इसके अलावा कई बार कुछ विषयों पर मीडिया में अश्लील किस्म की आम सहमति बन जाती है। वैसे समय में ब्लॉग का प्रयोग करना चाहता हूँ।
आपके पसंदीदा हिंदी ब्लॉग कौन-से हैं।
मोहल्ला मुझे पसंद है, क्योंकि वहाँ लोकतांत्रिक स्पेस है। शब्दों का सफर मैं नियमित नहीं देख पाता, लेकिन चाहता हूँ कि ये ब्लॉग सफल हो। सस्ता शेर और टूटी बिखरी सी, रवि रतलामी का हिंदी ब्लॉग, सारथी, भड़ास जैसे ब्लॉग पर नियमित नजर रहती है। हाशिया, पहलू जैसे ब्लॉग से सीखता रहता हूँ।
हिंदी ब्लॉगिंग की वर्तमान स्थिति के बारे में आप क्या सोचते हैं।
हिंदी ब्लॉग की अभी शुरुआत हुई है। अभी जिस तरह की ब्लॉगिंग हो रही है, उससे मुझे लगता है रंगमंच पर असली नायक और नायिकाओं का आना बाकी है। हिंदी ब्लॉग जगत में एक बड़ा विस्फोट होने वाला है। ऐसा मुझे लगता है और इसकी कामना भी है। खेल अभी शुरू होना है। अभी साइड लाइन की हलचल है, जिस कुछ लोग टूर्नामेंट मान बैठे हैं। वैसे शुरुआती दिनों में जो लोग जुटे और जुड़े हैं, उनका योगदान महत्वपूर्ण है।
प्रसिद्ध ब्लॉगर और पत्रकार दिलीप मंडल से वेबदुनिया की बातचीत
आप कब से ब्लॉगिंग की दुनिया में सक्रिय हैं। हिंदी में ब्लॉग शुरू करने का ख्याल कैसे आया।
ब्लॉग की दुनिया से परिचय तो पुराना था, लेकिन इंग्लिश ब्लॉग के जरिए। हिंदी में ब्लॉगिंग हो रही है, ये तो पिछले दो साल से मालूम था, लेकिन दूर से ही उन्हें देख रहा था। दिलचस्पी 2007 के बीच वाले महीनों में बढ़ी। जुलाई, 2007 में मोहल्ला पर "कामयाब लोगों का अलगाववाद" मेरी पहली पोस्ट थी। मेल के जरिए मोहल्ला के मॉडरेटर अविनाश को भेजी और उन्होंने धूमधाम से छाप दी। अगली पोस्ट थी, "कब था पत्रकारिता का स्वर्णकाल"। उस पर प्रतिक्रियाओं का लंबा सिलसिला चला (कई-कई हजार शब्द लिख डाले गए होंगे)। कुछ दिन तक तो मोहल्ला के लिए लिखता रहा, फिर ख्याल आया कि अपना भी एक मंच बना ही लिया जाए।
इस विधा के बारे में आपकी शुरुआती प्रतिक्रिया क्या थी।
ब्लॉग को लेकर ये तो मालूम था कि अभी इससे पैसे नहीं आने वाले हैं। चूँकि मेरा लगभग सारा लेखन प्रिंट और रेडियो के लिए रहा है तो बिना पैसे का लेखन कुछ जमा नहीं। लेकिन ये एहसास हमेशा था कि शुरुआती दौर होने के बावजूद ब्लॉग एक ताकतवर माध्यम है। इसकी दूसरी बड़ी ताकत है कि ये पाठक को सक्रिय होने की आजादी देता है। कहने को तो ये आजादी अखबारों और पत्रिकाओं में भी है। लेकिन पाठकों की सक्रियता ज्यादा मूर्त रूप में ब्लॉग में ही दिखती है। साथ ही प्रिंट काफी हद तक एकालाप है, जबकि ब्लॉग संवाद है।
आपके कौन-कौन से ब्लॉग हैं।
प्रणव प्रियदर्शी, अनुराधा और मैं, हम तीनों मिलकर रिजेक्ट माल नाम का ब्लॉग चलाते हैं। इसे अगस्त 2007 में बनाया गया है और नियमित न होने पर भी इसे हजारों पाठक मिले हैं। इसके अलावा मैं मोहल्ला, इयत्ता और कबाड़खाना - इन तीन ब्लॉग से जुड़ा हूँ, लेखक की हैसियत से।
ब्लॉग पर लिखते हुए आप किन्हीं खास विषयों पर ही लिखते हैं। आप अपने विषय का चुनाव किस आधार पर करते हैं।
ब्लॉग पर लिखते समय कई बार मैं वो विषय चुनता हूँ, जिनके लिए प्रिंट में जगह निकालना मुश्किल होता है। जाति-व्यवस्था और पत्रकारिता पर मेरे लेख उसी श्रेणी में हैं। जाति पर मैं प्रिंट में लिखता रहा हूँ, लेकिन ज्यादा तीखा लिखने के लिए ब्लॉग बेहतर मंच लगा। वैसे उनमें से कुछ लेख बाद में प्रिंट में भी छपे। इसके अलावा कई बार कुछ विषयों पर मीडिया में अश्लील किस्म की आम सहमति बन जाती है। वैसे समय में ब्लॉग का प्रयोग करना चाहता हूँ।
आपके पसंदीदा हिंदी ब्लॉग कौन-से हैं।
मोहल्ला मुझे पसंद है, क्योंकि वहाँ लोकतांत्रिक स्पेस है। शब्दों का सफर मैं नियमित नहीं देख पाता, लेकिन चाहता हूँ कि ये ब्लॉग सफल हो। सस्ता शेर और टूटी बिखरी सी, रवि रतलामी का हिंदी ब्लॉग, सारथी, भड़ास जैसे ब्लॉग पर नियमित नजर रहती है। हाशिया, पहलू जैसे ब्लॉग से सीखता रहता हूँ।
हिंदी ब्लॉगिंग की वर्तमान स्थिति के बारे में आप क्या सोचते हैं।
हिंदी ब्लॉग की अभी शुरुआत हुई है। अभी जिस तरह की ब्लॉगिंग हो रही है, उससे मुझे लगता है रंगमंच पर असली नायक और नायिकाओं का आना बाकी है। हिंदी ब्लॉग जगत में एक बड़ा विस्फोट होने वाला है। ऐसा मुझे लगता है और इसकी कामना भी है। खेल अभी शुरू होना है। अभी साइड लाइन की हलचल है, जिस कुछ लोग टूर्नामेंट मान बैठे हैं। वैसे शुरुआती दिनों में जो लोग जुटे और जुड़े हैं, उनका योगदान महत्वपूर्ण है।
साभार : वेबदुनिया
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