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बैंक व्यवस्था में सुराग के मतलब

Saturday, 28 March 2009

राष्ट्रीय गारंटी योजना में सरकार ने मजदूरों को बैंकों से भुगतान किए जाने का आदेश देते वक्त व्यवस्था में होने वाले छेदों पर सोचा ही नहीं. पहले सभी मजदूरों के सामने मजदूरी दी जाती थी. लेकिन जब योजना लागू करने वाले ही मस्टर रोल और जॉब - कार्डों में गड़बड़ियां करके कुल मजदूरी का बड़ा हिस्सा निगलने लगे तब बैंकों से भुगतान करने का फैसला हुआ. फिलहाल बैंक-खातों को भी चालाकी से इस्तेमाल करके हेराफेरी चल रही हैं. झारखण्ड के देवघर जिले का सोशल आडिट यही दर्शाता है.
जिला मुख्यालय से दक्षिण की तरफ करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर कारोन ब्लाक है। यहां के 5 गांवों में 12 से 15 अक्टूबर 2008 को ‘मजदूर किसान समिति’ ने ‘जी बी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद’ के साथ सोशल आडिट शुरू किया था. 16 अक्टूबर को कामों की समीक्षा के लिए जन सुनवाई की गई. इससे बैंक घोटालों से जुड़े कई चैंकाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं. सबूत बताते हैं कि कि कर्मचारियों ने वापिसी पर्चियों पर जाली दस्तखत बनाए और मजदूरों को बिना बताए ही उनके खातों से भारी रकम लूट ली. पूरालेख मीडिया ख़बर पर। लिंक : http://mediakhabar.com/topicdetails.aspx?mid=115&tid=818

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