हिंदी फिल्मअवार्ड समारोहों में अंग्रेज़ी का बोलबाला....

Monday, 28 January 2008



मैं कल रात को टीवी पर एक काफी मशहूर फिल्म अवार्ड समारोहों को देख रहा था। पूरे तो देखे नहीं- उसे के कईं कारण थे----सब से पहले तो यह कि इन बार-बार विज्ञापनों की वजह से मेरा तो दोस्तो सिर दुःखने ही लग जाता है ,अब कौन बार बार इतना सब झेल पाए। और वह भी जब ये समारोह कुछ दिन पहले हो चुके होते हैं , तो इन के परिणामों का भी कुछ ज्यादा क्रेज़ होता नहीं है। मैं यह शायद सोच रहा था कि यह प्रोग्राम डैफर्ड लाइव ही चल रहा है, लेकिन इन बच्चों को तो हम से भी ज्यादा पता होता है न, सो उन से पता चला कि यह प्रोग्राम तो दो-सप्ताह पहले हो चुका है।दूसरी बात यह थी कि उस प्रोग्राम के दौरान हमारे स्थानीय केबल-आप्रेटर के द्वारा दिए गये विज्ञापन भी बेहद परेशान कर रहे थे, जिन्होंनेस्क्रीन का लगभग एक चौथाई भाग कवर कर रखा था।हां, जिस विशेष कारण के लिए मैंने यह पोस्ट लिखी है --वह यह है कि मुझे इस समारके दौरान कुछ इस तरह का आभास हो रहा था कि जैसे कुछ लोग प्रोग्राम के दौरान जब स्टेज पर आते थे तो कुछ इस तरह के नखरे कर रहे थे मानो कि देश के करोड़ों लोगों के ऊपर हिंदी के दो शब्द बोल कर कोई अहसान कर रहे थे।कुछ लोग तो हिंदी का नाम आने पर इतना ज्यादा स्टाईल मार रहे थे( या यूं कहूं कि मारते हैं) कि उन पर हंसी ही आ रही थी। मुझे तो यही समझ यही नहीं आता कि क्या किसी को मस्ती की खुजली इतना भी परेशान कर सकती है कि वह अपने लोगों से अपनी ही भाषा में मुखातिब न हो सके। अंग्रेज़ी की इतनी भरमार देख कर बहुत दुःख होता है, मन खराब होता है कि जिन करोड़ों लोगों ने सिनेमा हाल की टिक्टें खरीद-खरीद कर आप को ऐसे सम्मान लेने एवं देने के काबिल बनाया, आप उन को ही भूलने की कैसे ज़ुर्रत करने की सोच भी सकते हो। ज़रा सोचिए कि देश की कितनी जनता इंगलिश समझ सकती है,तो फिर बीच बीच में यह इंगलिश बोल कर स्टाईल क्यों मारे जाते हैं।इन की स्टाईल मार मार कर बोली गई हिंदी सुन कर तो यही लगने लग जाता है कि ये लोग हिंदी फिल्मों में ही काम करते हैं यां हालीवुड से आये हैं। बस, दोस्तो,कल तो कुछ अजीब सा ही दिखा। कम्पीयर करने वालेने भी बीच में बहुत ही ज्यादा शुद्ध हिंदी बोलनी शुरु कर दी जिस से मुझे तो हिंदी भाषा का मज़ाक उड़ाने की बास आ रही थी। समझ में नहीं आ रहा कि इन को अब कौन समझाए। हिंदी ब्लोग तो ये लोग कहां पड़ते होंगे, लेकिन अपने मन की लिख कर अपना बोझ हल्का करने से तो मुझे कोई रोक नहीं सकता...सो वही कर रहा हूं।एक बार और याद आई है कि अपने शास्त्री जी की ब्लोग पर पिछले कुछ दिनों पहले एक पोस्ट थी कि अपने ब्लोग को कैसे पापुलर बनाएं....उन में मेरे ख्याल में एक बात और जुड़ जानी चाहिए कि जितना भी हो सके, हम सहज हो कर लिखें...बोल चाल की भाषा लिखेंगे तो लगता है कि हम अपने लोगों से बातें ही कर रहे हैं, अन्यथा मेरे जैसा बंदोंको जिस ने हिंदी केवल मैट्रिक तक ही दूसरी भाषा के रूप में पढ़ी है, कुछ कुछ बातें समझने में दिक्कत हो जाती है। और मैंने देखा है जहां बंदा कुछ शब्दों पर अटका बस वही उस का मन भी भटका। इसलिए आप सब बलोगर बंधुओं से भी निवेदन है कि भाषा जितनी सीधी सादी रख सकें उतना ही बेहतर होगा। वैसे भी हमलोग यह सब आपस में एक दूसरे को पढ़वाने के लिए तो लिख नहीं रहे, अगर हमने देश के आमजन को आते समय में इस चिट्ठाकारी के रास्ते हिंदी भाषा से और इंटरनेट से जोड़ना है तो हमें भाषा तो बिल्कुल सादी और बोलचाल की ही लिखनी होगी......नहीं तो लोग इस से भी दूर ही भागेंगे। हमें ज़रूरत है यह देखने कि आज कल हिंदी के समाचार चैनल इतने लोकप्रिय क्यों हैं, हमारे रेडियो-जॉकी हमें इतने अपने-से क्यों लगते हैं कि क्योंकि वे हमारी आम बोलचाल की ही भाषा बोलते हैं, हमें अपनी बातों से खुश रखते हैं....यही उन की सफलता का रहस्य है। चलो, अभी से मैं भी यह प्रण करता हूं कि कभी कभी अपनी पोस्टों पर जो एक-दो वाक्य अंग्रेजी के झाड़ कर खुश हो लेता हूं...मैं भी यह आदत छोड़ने की पूरी कोशिश करूंगा.....आर्शीवाद दें कि मैं इस में सफल हो सकूं।वैसे जाते जाते यह तो कह दूं कि मनोज कुमार जी का जो सम्मान इस समारोह में किया गया वह बहुत अच्छा लगा और इस से ठीक पहले एवं इससे संबंधित ही उर्मिला मटोंडकर की प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी। विशेषकर उर्मिला का स्टेज से नीचे उतर कर मनोज जी को अपने साथ उन का हाथ पकड़ कर स्टेज पर लाना हमारे भी मन को छू गया।
Posted by Dr.Parveen Chopra at 11:05 PM

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