'सब्ज़ी बेचकर क्रांति की बात करते चैनल'

Saturday, 1 December 2007


PRABHASH
JOSHI
'सब्ज़ी बेचकर क्रांति की बात करते चैनल'
पिछले दिनों हरियाणा के गाँव में 60 फ़ीट गहरे गड्ढे में गिरे प्रिंस को लेकर भारतीय टीवी चैनलों में आपाधापी मची हुई थी.
लेकिन आज वो तेज़ी झारखंड-पश्चिम बंगाल की सीमा पर एक खदान में फँसे 100 मज़दूरों के बारे में नहीं दिख रही. दरअसल टेलीविज़न मीडिया के बारे में दो बातें स्पष्ट हैं.
वे लपक पर उन्हीं ख़बरों पर जाते हैं, जिनका तमाशा बनाया जा सके. ऐसा तमाशा जिनमें वे लोगों को शामिल कर सकें.
और उस कारण अच्छी टीआरपी प्राप्त कर सकें. प्रिंस के मामले में टीवी चैनलों में जो मारा-मारी थी. उस कारण उनका टीआरपी भी प्रभावित हुआ है.
टीआरपी के करिश्मे के कारण भारतीय टीवी मीडिया काफ़ी संचालित रहती है. मुझे कहीं दिखता नहीं कि वे किसी ख़बर को लेकर या किसी मानवीय कहानी को लेकर संजीदा रहते हैं.
(इस बारे में आपका क्या कहना है? आप चाहें तो साथ में दिए गए फ़ॉर्म का इस्तेमाल करते हुए अपनी राय हम तक भेज सकते हैं)

'संजीदा नहीं'
झारखंड की एक खदान में 100 मज़दूर फँसे हैं और इन तक कोई पहुँच नहीं पा रहा. इनसे भी ज़्यादा पिछले दो साल में एक लाख 20 हज़ार किसानों ने आत्महत्या की.
किस टीवी चैनल ने इनके बारे में व्यवस्थित ढंग से ख़बरें दी है. किसी ने नहीं. आज भी एक-दो किसान प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे हैं. लेकिन ये मीडिया की ख़बर तक नहीं बनती.
इसका मतलब ये है कि जो मानवीय सरोकार की सचमुच की ख़बरें हैं, जिनका राष्ट्रीय जीवन में महत्व है, वो ज़रूरी नहीं कि टेलीविज़न के लिए ख़बर बनेगी.
क्योंकि टेलीविज़न के लिए वही ख़बर है जिससे तमाशा खड़ा किया जा सके और जिससे ऊँची टीआरपी प्राप्त की जा सके.
टीवी मीडिया के लोग पत्रकारिता की परिभाषा नहीं बदल सकते. हालाँकि ये लोग दावा करते हैं कि वे ख़बरों को देखने का नज़रिया बदल रहे हैं.
इनकी परेशानी ये है कि चौबीसो घंटे ऐसा क्या है जिसको ये दिखा सकें. इसलिए सबेरे से जो ख़बर इनके पकड़ में आती है, उसे रात तक वे ऐसे बेचते हैं जैसे सब्ज़ी बाज़ार में लोग अपनी सब्ज़ियाँ बेचते हैं.
लेकिन आज तक किसी कुंजड़े ने ये दावा नहीं किया कि वो सब्ज़ी बेचकर क्रांति कर रहा है. लेकिन ये लोग कहते हैं कि हम क्रांति कर रहे हैं.
इससे हुआ ये है कि लोग टीवी चैनल और उनकी ख़बरों को इतने हल्के से लेने लगे हैं कि वे दूसरे दिन अख़बार पढ़कर ही उस ख़बर की विश्वसनीयता और सत्यता की जाँच-परख करते हैं.
ऐसी दो-तीन सर्वे की रिपोर्ट इस देश में आ भी चुकी है.

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