बाजार के तर्क के आगे सबकुछ नाकाम हो जाता है

Sunday, 31 May 2009


राहुल देव, एडिटर - इन - चीफ, सीएनईबी


अनंत चीजें ऐसी है जो हमारी दृष्टि से बाहर हैं। कुछ सतह के नीचे है और कुछ हम इसलिए नहीं देख पाते हैं कि हम वहां जाते नहीं हैं. इस देश के सबसे बड़े हिस्से को हमने स्ट्रिंगर के भड़ोसे छोड़ दिया है. मीडिया के जो प्रभावशाली, प्रतिभावान और दृष्टिवान लोग है वह दिल्ली, मुंबई और महानगरों तक सीमित होकर रह गए हैं. उनके लिए बाहर निकलना मुश्किल होता है. ऐसे में विश्लेषण के तरीके में बहुत बड़ा अंतर हो जाता है. एक दृष्टिवान और दृष्टिहीन की विवेचना में जमीन-आसमान का अंतर हो जाता है. कहने का मतलब है कि मीडिया ऐसी बहुत जगहों पर नहीं जा पा रहा है जहाँ पर बहुत सारी रोचक चीजें हो रही हैं. उस भारत को हमने स्ट्रिंगर के भरोसे छोड़ दिया है. यही वजह है कि नया कंटेंट हमारे पास नहीं आ रहा है. और पढने के लिए यहाँ क्लिक करें। क्लिक करें।

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