बालिका बधू ....

Tuesday, 24 February 2009

बालिका बधू अब तक बेहतर डायरेक्शन के हुनर दिखलाता हुआ आगे बढ़ रहा था किंतु २३/१०/२००९ के एपिसोड में झोल आ बरात की बस कच्चे रास्ते पर आ गयी। निदेशन के कच्चेपन ने दर्शकों को एक झटका दे दिया। जिस इलाके से बस चली है, बाराती उसी क्षेत्र के पुराने बाशिंदे हैं। उसी क्षेत्र से सुगना का मंगेतर छुप-छुप कर सुगना से मिलने आता रहा है और जाता भी रहा है। हैरत है की बाराती भटक जाते हैं। बारातें अक्सर देर से पहुँचती हैं। शार्टकट अपनाने का कारण? औरतें बरात में गहने पहने होती हैं, बरात में जेवर चढाये जाते हैं, नकदी भी होती है और लड़कियां व् औरतें भी होती है, फिर अनजाने रास्ते पर बस को लेजाने का क्या मतलब हो सकता है? डायेरेक्टर ने ऐसा रिस्क क्यों लेना चाहा? क्या लेखक बदल दिया गया है? या अनुभवों की सीमायें यहीं तक थीं? इलाके के चप्पे-चप्पे से परिचित लोग किसी अनजान से रास्ता ही नहीं पूछते बल्कि अपनी मजबूरी को भी बयान भी कर देते है, क्यों? ये मूर्खता क्यों? बेहद कमज़ोर कड़ी ने दर्शकों को निराश किया है। अगली कड़ियों में भूलें और होंगी, इस संभावना से इनकार नही किया जा सकता। खतरे आगे आयेंगे।


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