पत्रकारिता का सच - भाग 3

Thursday, 26 February 2009

हमलोग उस समय तक न साहित्यिक राजनीति करते थे और न वाकिफ थे। वे दिन हमारे पढ़ने-लिखने,साहित्यिक मिज़ाज बनाने,साहित्य और पत्रकारिता सीखने के दिन थे। उनमें से केवल मैं ही पत्रकार था। हिन्दी साप्ताहिक ‘जनविक्रांत’ का प्रकाशन संपादन करता था। कुदरा,चेनारी,भभुआ,डिहरी आदि छोटी जगहों पर जा-जाकर जनविक्रांत का ग्राहक मैं बनाता था। एक बार मेरे साथ मेरे चाचा,फणीश्वर नाथ मिश्र एंव शंकर भी रोहतास [अकबरपुर] आदि जगहों पर गये थे।

पटना से आकर आचार्य रामेश्वर सिंह काश्यप सासाराम शांति प्रसाद जैन कॉलेज के प्राचार्य हो चुके थे। प्रो। अरूण कुमार एक सुलझे हुए साहित्यिक सफल प्राध्यापक एवं कुशल वक्ता के रूप में पूरे क्षेत्र में विख्यात थे। पुरी आत्मकथा मीडिया ख़बर.कॉम पर।
http://mediakhabar।com/topicdetails.aspx?mid=35&tid=742

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