टीआरपी खेल नही व्यवसायिक व्यवस्था का आंकलन है । इसी व्यवस्था की सफलता पर टीवी मीडिया का अस्तित्व टिका होता है । टीआरपी से बाज़ार चलता है और बाज़ार ही साहित्य , संस्कृति , सभ्यता , राजनीति और समाज की दशा और दिशा तय कर रहा है
डा रंजन जैदी , संपादक , समाज कल्याण
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