मीडिया मंत्र का कालम : ब्लॉग मंत्र - महीने का ब्लाग : मोहल्ला

Tuesday, 29 April 2008

मीडिया मंत्र का कालम : ब्लॉग मंत्र - महीने का ब्लाग : मोहल्ला
हिन्दी ब्लाग की दुनिया लगातार बढ़ रही है। नित्य नए - नए ब्लाग बन रहें हैं और उनपर जमकर लिखा - पढी, चर्चा और बहस हो रही है। इनमे से कुछ ब्लाग ऐसे हैं जो बहुत खास हैं और नए थीम पर आधारित है। ऐसे ही कुछ खास ब्लाग की चर्चा हम अपने इस स्तम्भ में करते हैं और उस ब्लॉग के ब्लॉगर से मिलवाते हैं। साथ ही चुने गए ब्लॉग को मीडिया मंत्र - महीने का ब्लॉग भी घोषित किया जाता है। इसी क्रम में इस बार हमने बहुचर्चित ब्लॉग मोहल्ला को चुना है जिसे पत्रकार अविनाश चलाते हैं।हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में मोहल्ला का खास स्थान है और यह सबसे अधिक लोकप्रिय ब्लॉग में से एक है। साथ ही कम्युनिटी ब्लाग का एक अच्छा उदाहरण भी है और इसके सदस्यों में उदय प्रकाश, ओम थानवी, कुर्बान अली, राहुल पंडिता, अशोक पांडे जैसे प्रतिष्ठित नाम शामिल है। ब्लॉग विचार, चर्चा और मंथन का इतना अच्छा मंच भी हो सकता है इसे मोहल्ला ने साकार कर दिखाया है। यही कारण है कि इसे ढेरों पाठक मिले हैं। खास बात यह है कि इस मंच पर सबको अपनी बात कहने की छूट है चाहे आप पक्ष में हो या विपक्ष में। और शायद इस ब्लॉग की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण भी यही है। मोहल्ला पर लिखने वाले और ख़ुद का अपना ब्लॉगरिजेक्ट माल चलाने वाले ब्लॉगर और पत्रकार दिलीप मंडल मोहल्ला और इसके ब्लॉगर अविनाश के बारे में कहते हैं – अविनाश की ताकत ये है कि आप उसके बनाए ब्लॉग पर जाकर उसे गाली दे सकते हैं, उसकी भर्त्सना कर सकते हैं और फिर भी उस ब्लॉग पर बने रह सकते हैं। ब्लॉग का लोकतंत्र अपने सबसे मौलिक रूप में जिस एक जगह नजर आता है, वो जगह अविनाश ने बनाई है। मोहल्ला भी ऐसा जिसमें एक दूसरे से 180 डिग्री की दिशा में सोचने वाले साथ साथ एक दूसरे को चाहते हुए भी और कोसते हुए भी रह सकते हैं।मोहल्ले की सोंच और उससे जुड़ी तमाम जानकारियां ख़ुद इस ब्लॉग के ब्लॉगर अविनाश दे रहे हैं जो पेशे से पत्रकार हैं और दिल्ली में एनडीटीवी इंडिया में कार्यरत हैं।मोहल्लाहम सब कभी वहीं थे... अब भी नहीं भूले हैं अपना-अपना मोहल्ला...
सवाल - आपने जब मोहल्ला की शुरुवात की उस वक्त ज्यादातर लोग हिन्दी ब्‍लॉगिंग से अनजान थे । ब्‍लॉगिंग की दुनिया से आपका परिचय कैसे हुआ ?
जवाब: हम मीडिया में सिर्फ इसलिए नहीं हैं क्‍योंकि ख़बर और लोगों के बीच एक मूक माध्‍यम बन सकें। इस माध्‍यम में सर्जना की एक बेचैनी भी होनी चाहिए। लेकिन आज के मीडिया संस्‍थानों में इस बेचैनी के लिए जगह नहीं है। एक बनी-बनायी धुन पर हमें गाना है, नाचना है। ऐसे में उन लोगों के लिए मुश्किल है, जो एक नयी राह के हमसफ़र होना चाहते हैं। संयोग से, जब हमने पत्रकारिता की तरफ अपने पैर बढ़ाये थे, तो अपनी तरह के एक अख़बार की कल्‍पना मन में थी। कुछ कहानियां राजेंद्र माथुर और रघुवीर सहाय के वक्‍त की ज़ेहन में तैर रही थीं। आये तो हमारे सामने एक ऐसी रेल थी, जिसके इंजन में बाज़ार का ईंधन था। बाज़ार के मुहैया कराये हुए मानदंड थे। बाज़ारू सर्वे था। एक चल रही बयार के बीच नदी की उल्‍टी धारा में तैरने की कोशिश बहुत सारे लोगों ने की होगी- हमने भी की। लेकिन वो मान्‍य नहीं हुआ। हम राज्‍य और उसकी संपत्ति के खिलाफ़ मज़बूत पत्रकारीय मूल्‍य नहीं निभा सके। वो कुछ मजबूरियां रही होंगी, जिसका ज़‍िक्र शायद तब करें, जब अपनी स्‍वीकारोक्तियों का लेखा-जोखा करने लायक साहस जुटा लें। तो बात ये थी मजबूरियों की आड़ और बाज़ार के मज़बूत महल में फुसफुसाते हुए हम अपनी बेचैनी को संजोये रहे। लेकिन सच ये है कि मोहल्‍ला शुरू करने से पहले मुझे बिल्‍कुल नहीं पता था कि ब्‍लॉग क्‍या चीज़ है। और अगर है, तो हिंदी में ये कैसे संभव है।
सवाल - मोहल्ले की शुरुवात कैसे हुई
: हम छोटे शहर के लोग अपनी यादों के सहारे बड़े शहरों में संघर्ष कर रहे हैं। हमारे और भी दोस्‍त अपनी जगह-ज़मीन छोड़ कर नये इलाके में किस्‍मत आजमाने पहुंचे। ऐसी ही हमारी दोस्‍त हुआ करती थी, पूनम मल्लिक। हम साथ-साथ नाटक करते थे। वो ज़्यादा प्रतिबद्ध थी। मेरी महत्‍वाकांक्षाओं की डोर कई सारी पतंगों से जुड़ी हुई थी। मैं पीछे छूट गया, एक दिन वो मुंबई चली गयी। वहीं उसने शादी की। ये रिश्‍ता एक ट्रैजिक इंड की तरह ख़त्‍म हुआ। मसूरी में उसका इंतकाल हुआ। कहते हैं, उसके पति ने उसे घर की बालकनी से धक्‍का दे दिया। उसकी हत्‍या की गयी। एक वारदात, जिसकी कहानी मुजरिम को सज़ा मिलने से पहले ही दफन हो गयी, उसे दुनिया को सुनाने के लिए हमने थोड़ी कोशिश की। अख़बार-पत्रिकाओं में लेख लिखे। उसी दरम्‍यान हमने इंटरनेट पर भी इस कहानी को जारी की कोशिश की। हमारा परिचय इटली में रहने वाले सुनील दीपक से हुआ, जो हिंदी के लोकप्रिय ब्‍लॉगर हैं। अपनी वेबसाइट कल्‍पना पर उन्‍होंने पूनम की ज़‍िंदगी को तो जगह दी ही - हमें ये भी बताया कि कैसे आप देवनागरी में बिना एक पैसा खर्च किये ब्‍लॉगिंग कर सकते हैं... और इस तरह मोहल्‍ले की शुरुआत हुई।
सवाल - मोहल्ला इतना सफल ब्लॉग होगा। क्या आपको ऐसी उम्मीद थी ?
जवाब: सफलता और असफलता का निर्धारित लक्ष्‍य तो शुरू में कहीं था भी नही। यही था कि अपनी पसंद को एक जगह संयोजित करें। जो चीज़ मुझे अच्‍छी लगती है - उसका संकलन भर। मुनव्‍वर राना की गज़लें मसलन किसी को घर मिला हिस्‍से में या कोई दुकां आयी मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्‍से में मां आयी, पेरिया परसिया की कविता ईश्‍वर भी उतना अकेला नहीं होगा आसमान में, कृष्‍ण कल्पित की पूरी कितबिया एक शराबी की सूक्तियां हमने मोहल्‍ले पर पब्लिश की, तो हमारे कई दोस्‍तों ने देखा। उन्‍हें अच्‍छा लगा। ये देखना और अच्‍छा लगना उन दिनों में हमें ले गया, जब हम पटना के एक कमरे में ऐसी कई चीज़ों के बीच बहस भी करते थे और अक्‍सर पूरी रात सिगरेट के धुओं और बहस में गुजार देते थे। हमने सोचा कि मोहल्‍ले को कुछ ऐसा ही बनाते हैं। संयोग से दोस्‍तों ने साथ भी दिया।
सवाल - मोहल्ला को कम्युनिटी ब्लॉग बनाने का ख्याल कैसे आया। आने वाले समय में हिन्दी ब्लॉग जगत में आप कम्युनिटी ब्लॉग का कैसा भविष्य देखते हैं ?
जवाब: मोहल्‍ला दरअसल शुरू से कम्‍युनिटी ब्‍लॉग था। लेकिन पहले मैं अकेला मॉडरेटर था। हमारे इनबॉक्‍स में पोस्‍ट्स आते थे और मैं अपने हिसाब से उसे मोहल्‍ले में शाया करता था। ये सिलसिला नया ज्ञानोदय विवाद और उसके बाद मीडिया पर चली लंबी बहस तक चला। ब्‍लॉगस्‍पॉट में एक विकल्‍प ये भी है कि एक ब्‍लॉग में सीधे कई लोग लिख सकते हैं। इसके लिए मेन मॉडरेटर को इजाज़त देनी होती है। जिनसे लिखवाना चाहते हैं, उन्‍हें इनविटेशन भेजनी होती है। बाद में जब मेरे इनबॉक्‍स में सा‍मग्रियों की आवाजाही मेरे संयोजन-संपादन से बाहर हो गयी, तो मैंने इस विकल्‍प पर गंभीरता से सोचना शुरू किया। एक दिन दिल मज़बूत करके मैंने उस पर मुहर लगा दी। अब जैसे मैं मोहल्‍ले में हस्‍तक्षेप कर सकता हूं, वैसे आप भी कर सकते हैं - बशर्ते मैंने इनविटेशन भेजी हो। हां, इतना ज़रूर है कि इस मामले में चयन को लेकर मैं अतिशय सजग हूं। आज मोहल्‍ले के मेंबरानों में उदय प्रकाश, ओम थानवी, कुर्बान अली, राहुल पंडिता, अशोक पांडे जैसे शब्‍द-समझ की धनी शख्‍सीयतें हैं।
सवाल - आपको मोहल्ला को शुरू किए हुए एक अरसा बीत चुका है । इतने समय में हिन्दी ब्‍लॉगिंग में आप क्या परिवर्तन देखते हैं ?
जवाब: जिसे अरसा बीतना कहते हैं, वो कई सालों का आभास देता है। जबकि हिंदी ब्‍लॉगिंग मुश्किल से पांच साल की विधा है। इसमें साढ़े तीन साल पहले तक उंगलियों पर गिनने लायक ब्‍लॉग थे। ज्‍यादातर ब्‍लॉगर प्रवासी भारतीय थे। एक दूसरे से रिश्‍ता वाह-वाह कहने भर का था और कभी ब्‍लॉगर मीट में मिल लिये, तो साथ में महंगे होटल का अच्‍छा खाना खा लिया। ऐसे में जब मोहल्‍ला शुरू हुआ, तो पुराने ब्‍लॉगरों को तब तक अच्‍छा लगा, जब‍ तक यहां विमर्श की पंचायत नहीं शुरू हुई। जाहिर है, जहां विमर्श होता है, वहां खरी-खरी सुनने-सुनाने का धैर्य भी चाहिए। तब के ब्‍लॉगर इस स्थिति को झेल पाने के लिए तैयार नहीं था। उन्‍होंने मोहल्‍ले की शैली का विरोध करना शुरू कर दिया (इस विरोध की हूक उनके बीच अब भी उठती रहती है)। लेकिन इस बीच हुआ ये मोहल्‍ले के बाद तीन हजार से ज्‍यादा ब्‍लॉग बने और कंटेंट के मामले में वे कायदे की मिसाल रख रहे हैं। अब वे साधुवाद और वाह-वाह से आगे लोकतांत्रिक समझ के साथ ब्‍लॉगिंग कर रहे हैं।
सवाल - आनेवाले समय में हिन्दी ब्‍लॉगिंग का क्या भविष्य आप देखते हैं ?
जवाब: किसी भी भाषा की ब्‍लॉगिंग उस कॉमन मैन का हथियार है, जिसको बोलने के लिए पारंपरिक मीडिया स्‍पेस नहीं देना चाहता। वॉक्‍सपॉप या आमलोगों की राय के नाम पर जो फर्जीवाड़ा होता है, उसके खिलाफ़ ब्‍लॉगिंग व्‍यापक प्रतिरोध की जगह बनने जा रहा है। अंग्रेजी जैसी भाषाओं में ये एक हद तक बन भी चुका है। इराक वार के समय में दुनिया में ज्‍यादातर ब्‍लॉगर ऐसे थे, जिन्‍होंने बुश को गाली दी। हिंदी में फॉन्‍ट की असुविधा के चलते यहां ब्‍लॉगिंग के विकास की गति थोड़ी धीमी है। जैसे ही ये समस्‍या ख़त्‍म होगी, आप देखेंगे लाखो ब्‍लॉगर अपने नारों के साथ राज्‍य की तानाशाही रोकने की कोशिश करेंगे और कई बार वे कामयाब भी होंगे।

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