शब्दों का खेल है बीडू
Thursday, 27 March 2008
शब्दों का खेल है बीडू
लेखक - हरीश चंद्र बरनवाल
हिन्दी न्यूज़ चैनलों के अगर हिन्दी भाषा को किसी ने महत्त्व दिलाया है , तो वो है टेलीविज़न न्यूज़ चैनल । पहली बार बाज़ार ने महसूस की हिन्दी भाषा में कितनी ताक़त है । हिन्दी के पत्रकार न सिर्फ़ अपना सीना चौडा करके घूमते हैं , बल्कि ये भी जानते हैं की हिन्दी भाषा पर पकड़ की वजह से ही उनकी रोजी - रोटी कितनी सहूलियत से चल रही है । आज भाषा का जो जो भी जितना बड़ा जानकर है ... वो उतना बड़ा पत्रकार बना हुआ है। दरअसल आज टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों के बीच टी आर पी को लेकर जिस तरह की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है ... उसमे मुकाबले के लिए बहुत कम क्षेत्र बच गए हैं । न्यूज़ चैनलों के पास न तो विजुअल की कमी है और न तकनीक की ... ऐसे मई सारा ज़ोर भाषा पर ही आ टिका है । खास बात ये है की हिन्दी न्यूज़ चैनलों में अंग्रेज़ी भाषा के पंडितों की भी कमी नही है ... लेकिन हिन्दी भासिओं की अपेक्षा अंग्रेजीदां लोगों की ज्यादा पूछ नही है ।
हालांकि न्यूज़ चैनलों के लिए भले ही हिन्दी भाषा का महत्व बढ़ा हो , लेकिन टेली विज़न पत्रकारिता में हिन्दी भाषा सिकुडटी जा रही है । अब इसे बाज़ार का दबाव कहें या फिर टेलीविज़न का मिजाज़ , लेकिन हकीकत यह है की टेलीविज़न न्यूज़ चैनल ने हिन्दी को महज सैकडों शब्दों की भाषा बनाकर रख दिया है । टेलीविज़न के हिन्दी पत्रकार बनने की इच्छा रखने वाले इसे अपनी सहूलियत मान सकते हैं । यंहा हिन्दी भाषा की कद्र वंही तक जिसे लोग आसानी से पचा लें । इसे हिन्दी के विद्वान दुर्भाग्य कह सकते हैं , तो टेलीविज़न के बुज़ुर्वा पत्रकार इसे इसका सोभाग्य बता सकते हैं । वैसे टेलीविज़न पत्रकार इस पचड़े में न फँसें । हम आपको यह बताने जा रहे हैं की कैसे इस पत्रकारिता में शब्दों का खेल शुरू हो गया है । कैसे नए शब्द आकारलेते जा रहें हैं तो कुछ दम तोड़ते जा रहें हैं । बस आप दो - चार शब्दों का ज्ञान बढाइये , फिर आप भी भाषा के मामले में किसी से पीछे नही रहेंगे ।
सबसे पहले बात उन शब्दों की जिनका टेलीविज़न में लगभग इस्तेमाल नही किया जाता । इसकी जगह दूसरेकिसी खास शब्द को जगह दे दिया गई है । जैसे -
- पैतृक के लिए पुश्तैनी
- निश्चित या अनिश्चित के लिए मियादी या बेमियादी
- मंजूरी , अनुमति , स्वीकार , इजाज़त जैसे शब्दों के लिए प्राथमिकता से लिखें ... इजाज़त , मंजूरी , अनुमति , स्वीकार
- आवश्यक के बदले जरुरी
- नेतृतव की बजाये अगुवाई
- अभियुक्त की बजाय आरोपी
- भाग लेने की बजाय हिस्सा लेना
- संयुक्त की बजाय मिला - जुला या फिर वाक्य के मुताबिक
- अनुसार की जगह मुताबिक
- वर्ष की बजाय साल
- केवल की बजाय सिर्फ़ या बस
- सही की बजाय ठीक
- स्थिति की बजाये माहौल या हालात
- प्रतिबंध की बजाये मनाही या रोक , लेकिन कई बार प्रतिबंध लिखना जरूरी हो जाता है ॥
- द्वारा की बजाये जरूरत के हिसाब से कुछ और
- निर्णय की बजाये फैसला
- क्योंकि या इसलिए का प्रयोग नही
- प्रयोग की बजाये इस्तेमाल
- विख्यात की बजाये मशहूर
- आरंभिक या प्रारंभिक की बजाये शुरूआती
- व्यक्ति की बजाये आदमी या लोग
- विभिन्न की बजाये अलग - अलग
- मामला गर्म होता जा रहा है - मामला तूल पकड़ता जा रहा है
- मृत्यु नही लिखते बल्कि मौत या मारे गए
- कारण की बजाये वजह
- विरुद्ध की बजाये खिलाफ
- वृद्धि की बजाये बढोत्तरी
- व्यवहार की बजाये सुलूक
- अनुसार की बजाये मुताबिक
- कार्यवाही और कामकाज को प्राथमिकता में लिखें - कामकाज - कार्यवाही .... हालांकि कई बारगी कार्यवाही लिखना जरूरी हो जाता है
- आह्वान की बजाए अपील
- न्यायालय या कोर्ट की बजाए अदालत
- अफसर या आफिसर नही बल्कि अधिकारी
- नेतृत्त्व की बजाए अगुवाई
- अतिरिक्त की बजाए अलावा या सिवाए
- अवस्था की बजाए हालत
- मुहिम और अभियान को वरीयता लिखें
- अंदाजा और अनुमान को वरीयता में
- अनुकूल की बजाए मुताबिक
- फल , परिणाम - नतीजा या अंजाम वरीयता क्रम में
- आपत्ति - एतराज
- अतिथि - मेहमान
- आवश्यक की बजाए जरूरी
- आधारभूत ढांचा की बजाए बुनियादी ढांचा
- फौज और सेना को वरीयता क्रम में
- ख्याति की बजाए मशहूर
- जायजा और आकलन वरीयता में
- दरख्वास्त और आवेदन वरीयता क्रम में
- पक्षपात और भाई -भतीजावाद वरीयता क्रम में
- यधपि की बजाए हालांकि , बहरहाल
कुछ ऐसे शब्द जिनका लिखने में तो बहुत कम इस्तेमाल होता है ... लेकिन एंकरिंग या रिपोर्टिंग के दौरान बोलने में खूब इस्तेमाल होता है ... ये सुनने के लिहाज़ से बहुत अच्छा होता है और इससे टेलीविज़न की खूबसूरती भी झलकती है ।
- विचार के लिए गौर करना
- किस आधार पर की बजाए किस बिना पर
- हर दिन की बजाए हर रोज
- सभी की बजाए हर
कुछ शब्द टेलीविज़न में बड़े ही अच्छे माने जाते हैं - इसका आधार ये है किइन शब्दों मे गूंज है ... इसे बोलते ही एक बिम्ब खड़ा हो जाता है । मसलन
- अफरा - तफरी
- धर दबोचा
- अंधाधुंध
- भाई - भतीजावाद
आज टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों में सबसे बड़ी जरूरत भाषाको लेकर है । कोई प्रोग्राम कितना अच्छा होगा । आज इसका सारा दारोमदार स्क्रिप्ट के लेवल पर आ टिका है । आपके लिखे दो शब्द दर्शकों को काफी देर तक रोके रख सकते हैं ...
एक छोटे से ब्रेक के बाद ......अगले अंक में
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