'पत्रकारों पर बढ़ रहे हैं हमले'

Thursday, 14 June 2007

'पत्रकारों पर बढ़ रहे हैं हमले'

एलेन पिछले सात सप्ताह से भी ज़्यादा समय से लापता हैं
आज यानी तीन मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है.
इस मौके पर दुनियाभर में प्रेस की स्वतंत्रता के सवाल पर बोलते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा है कि दुनिया भर में पिछले कुछ समय में पत्रकारों पर हो रहे हमलों में तेज़ी आई है.
उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा केवल उनके साथ ही नहीं हो रहा है जो युद्ध और संघर्षों के बीच जाकर काम कर रहे हैं बल्कि भ्रष्टाचार, ग़रीबी और बाहुबलियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं.
और फिर बात हुई इस कड़ी में आजकल के सबसे गंभीर और चर्चित मामले की. उन्होंने अपील की कि बीबीसी संवाददाता एलेन जॉन्स्टन को तत्काल रिहा किया जाना चाहिए.
मार्च महीने की 12 तारीख़ को एलेन जॉन्स्टन अपने ग़ज़ा स्थिति कार्यालय के बाहर से लापता हो गए थे.
पिछले सात सप्ताह से भी ज़्यादा समय बीतने के बाद भी 44 वर्षीय एलेन का अभी तक कोई पता नहीं चल पा रहा है.
तो क्या सोचते हैं आप इस बारे में. क्या राय है आपकी प्रेस की आज़ादी और उसपर दुनियाभर में हो रहे हमलों के बारे में. क्या प्रेस को वो आज़ादी प्राप्त है जितनी कि उसे मिलनी चाहिए या फिर पत्रकारिता की भी लक्ष्मण रेखा तय की जानी चाहिए. प्रेस की आज़ादी के सवाल को आप किस तरह से देखते हैं.
अपनी प्रतिक्रियाएँ यहाँ पढ़िए
उधर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने भी कहा है कि एलेन को अगवा करके रखने के पीछे कोई वाजिब वजह नहीं हो सकती है और ब्रिटेन उन्हें मुक्त कराने का हर संभव प्रयास करेगा.
प्रेस पर हमला
पर ऐसा नहीं है कि प्रेस पर हमले का यह एक पहला मामला हो बल्कि एलेन का मामला एक उदाहरण है उन तमाम कुठाराघातों का जो लगातार प्रेस पर होते रहते हैं.
दुनियाभर में प्रेस की लोगों तक जानकारी पहुँचाने में अहम भूमिका है
पिछले दिनों पाकिस्तान में ऐसा देखने को मिला. वहाँ भी लगातार प्रेस की स्वतंत्रता पर हो रहे हमलों को लेकर चिंता जताई गई है.
डेनियल पर्ल से लेकर ऐसे नामों की सूची लंबी है जो प्रेस पर हुए हमलों के सबूत हैं. भारत में भी पत्रकार शिवानी भटनागर की हत्या का मामला अभी तक अनसुलझा ही है.
फिर प्रेस की स्वतंत्रता के लिए अरुंधति रॉय, तसलीमा नसरीन और सलमान रूश्दी जैसे नामों ने भी कीमतें अदा की हैं. इन्हें कभी फ़तवों तो कभी बहिष्कारों का सामना करना पड़ा है.
दुनिया के विकसित देशों से लेकर तीसरी दुनिया की अनकही सच्चाई को सामने लाने की कोशिश में लगे लोगों तक प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले होते रहे हैं.
अच्छी बात यह है कि प्रेस की स्वतंत्रता पर हो रहे इन हमलों के बावजूद कई पत्रकारों ने अपने काम के साथ समझौता नहीं किया है और पत्रकारिता की भूमिका को मज़बूत कर रहे हैं.

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