टीआरपी की खातिर

Wednesday, 27 June 2007

टीआरपी की खातिर
छोटे पर्दे का संसार पूरी तरह बदल गया है। टीवी आज एंटरटेनमेंट का अहम जरिया है और यह अरबों रुपए के कारोबार का आधार भी है। टीवी पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों में आजकल बॉलिवुड की फिल्मों के तमाम मसालों का लुत्फ लिया जा सकता है। इन धारावाहिकों को बनाने में प्रड्यूसर भारी-भरकम रकम खर्च करते हैं और उनकी कमाई भी तगड़ी होती है। कमाई बढ़ाने के चक्कर में सारा जोर टीआरपी रेटिंग बढ़ाने पर होता है और इसके लिए तमाम उपाय किए जाते हैं। आजकल टेलिविजन धारावाहिक सालोंसाल चलते हैं और ऐसे में दर्शकों को बांधे रखना आसान नहीं है। इसके लिए बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान चलाए जाते हैं, ताकि टीआरपी की दौड़ में सीरियल पिछड़ नहीं जाए। प्रचार के लिए टीवी-रेडियो व अखबारों में विज्ञापन देने जैसे पुराने तरीके तो आजमाए ही जाते हैं, आजकल सड़क किनारे बड़े-बड़े होर्डिंग लगवाने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। तमाम धारावाहिकों की किसी खास कड़ी के बारे में दर्शकों को बताने के लिए सड़क किनारे बड़े-बड़े होर्डिंग लगवाए जाते हैं। यह नुस्खा किसी नए सीरियल की शुरुआत पर भी आजमाया जाता है। आखिर सीरियलों के लिए इतने आक्रामक प्रचार की जरूरत क्यों पड़ रही है? एक सीरियल के प्रड्यूसर कंचन अधिकारी की राय में, 'आजकल चैनलों के बीच गलाकाट प्रतियोगिता है। ऐसे में अपने-अपने धारावाहिकों के लिए दर्शक खींचने के लिए चैनलों को लगातार नए-नए तरीकों के बारे में सोचना पड़ता है। आजकल किसी भी चैनल के लिए समर्पित दर्शकों की संख्या काफी कम है। ज्यादातर दर्शक चैनल बदलने वाले होते हैं। इस वजह से जब किसी सीरियल के दर्शकों की संख्या घटने लगती है, तो चैनल और प्रड्यूसर दर्शकों को रिझाने के लिए होर्डिंग-बैनर लगवाते हैं। इनमें कुछ इस तरह की पंचलाइन दी जाती है, जिससे दर्शकों में सीरियल को लेकर उत्सुकता जगे।' डायरेक्टर अंशुमान सिंह दर्शकों को खींचने की इस रणनीति का समर्थन करते हुए कहते हैं, 'जब किसी सीरियल के दर्शकों की संख्या गिरने लगती है, तो चैनल को टीआरपी बढ़ाने के कई तरीकों पर विचार करना होता है। टीवी पर आने वाले प्रोमो बहुत कम दर्शकों द्वारा देखे जाते हैं। इसलिए ज्यादा दर्शकों तक अपनी बात पहुंचाने और किसी खास एपिसोड के प्रति उनके मन में उत्सुकता जगाने के लिए चैनलों की ओर से कुछ और रणनीति बनाई जाती है। होर्डिंग लगाने का ट्रेंड इसी का हिस्सा है।' पर क्या यह ट्रेंड कारगर साबित हो रहा है? अंशुमान बताते हैं, 'जब आप दर्शकों को किसी सीरियल की आगामी कड़ी के बारे में बार-बार बताएंगे और उनके मन में उत्सुकता जगाएंगे, तो लोग निश्चित रूप से उसे देखना चाहेंगे।' पर दर्शक इस बारे में क्या सोचते हैं? मॉडल दीपाली देशपांडे कहती हैं, 'इस तरह के हथकंडे एक या दो एपिसोड के लिए तो दर्शक जुटा सकते हैं, लेकिन इससे किसी सीरियल को लंबे समय तक दर्शक नहीं मिल सकते। इसकी वजह है कि ज्यादातर सीरियलों में तो वही सास-बहू का घिसा-पिटा किस्सा सालों से दिखाया जा रहा है। कई बार तो ऐसा होता है कि सालों-साल चलने वाले इन सीरियलों में कोई खास किरदार निभाने वाला कलाकार ही बदल दिया जाता है। कई दर्शकों की दिलचस्पी तो इसी वजह से खत्म हो जाती है, क्योंकि सीरियल में उनका पसंदीदा कलाकार रोल नहीं कर रहा होता। ऐसे में अगर होर्डिंग-बैनर लगाकर एक-दो एपिसोड के लिए दर्शक जुटाने में मदद मिलती भी है, तो चैनलों को दर्शक बनाए रखने के लिए कोई ठोस नीति अपनानी होगी।' शायद दीपाली की बातों से टीवी चैनल वाले और सीरियल बनाने वाले सहमत होंगे। तो हो सकता है कि कुछ दिनों में सीरियलों के लिए दर्शक जुटाने के लिए कोई नया नुस्खा भी सामने आ जाए।

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